Yagyavalkyeshwar याज्ञवल्क्येश्वर

विश्वानर प्राचीन समय में नर्मदा नदी के किनारे स्थित नरमपुर नामक नगर में पैदा हुए थे। ये मुनि शांडिल्य गौत्र से थे,व शिवजी के परम भक्त थे। वैश्वानर का विवाह शुचिष्मति नामक कन्या से हुआ था। विवाह के कई साल बाद उनकी पत्नी ने उनसे शिवजी समान पुत्र की अभिलाषा रखी। पत्नी की बात सुनकर विश्वानर क्षण भर के लिए स्तब्ध हो गए। वे सोचने लगे कि मेरी पत्नी ने यह कैसी बात कही है। ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान पिनाकी रुद्र स्वयं उसकी जिह्वा पर बैठकर बोल रहे हैं। ऐसा विचार करके उन्होंने अपनी पत्नी को आश्वासन दे दिया, वे वाराणसी जा पहुंचे और कठिन तप द्वारा भगवान शंकर के वीरेश लिंग की उपासना करने लगे। तपस्या करते करते उन्हें लिंग के मध्य एक बालक दिखाई दिया। उसकी आयु आठ वर्ष थी। उस बालक को देखकर विश्वानर मुनि रोमांचित हो उठे और अभीलाषा पूर्ण करने वाले आठ पद्यों द्वारा भगवान शिव की स्तुति करने लगे। उनकी स्तुति से प्रसन्न होकर बाल रूप भगवान शिव ने कहा – “महामते! मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं। अब तुम अपने घर जाओ। समय आने पर मैं तुम्हारी पत्नी की इच्छा अवश्य पूर्ण करूंगा। मैं उसके गर्भ से पुत्र रूप में प्रकट होऊंगा। उस अवतार में मेरा नाम गृहपति होगा। मैं परम पावन व सभी देवताओं का प्रिय होऊंगा।"समय आने पर समस्त अभीष्टों के विनाशक तथा दोनों लोकों के लिए सुखदायक भगवान रुद्र का शुचिष्मती के गर्भ से अवतार हुआ। गृहपति भगवान शिव के उन्नीस अवतारों में से छठे अवतार माने जाते हैं। शिव महापुराण तथा स्कंद महापुराण के अनुसार इनके पिता का नाम विश्वानर एवम् माता का नाम शुचिषमति था। भगवान शिव के गृहपति अवतार का दर्शन करने के लिए काशी में अनेक ऋषि, महर्षि, महात्मा, संत, देवी-देवता, यक्ष, गंधर्व, किन्नर तथा अन्य आए। इसी क्रम में ऋषि याज्ञवल्क्य काशी आए उन्होंने काशी में शिवलिंग की स्थापना की जिसे याज्ञवल्क्येश्वर के नाम से जाना जाता है।

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9/19/20231 min read

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